Madhubala - The Matchless Beauty
Sunday, January 17, 2010
मधुबाला को भी मिली थी इश्क में मायूसी
मधुबाला को भी मिली थी इश्क में मायूसी
नई दिल्ली, एजेंसी
First Published:07-09-09 12:11 PM
Last Updated:07-09-09 12:15 PM
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बेमिसाल हुस्न की मलिका मधुबाला से शादी का प्रस्ताव मिलने पर ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होता, जो उसे ठुकराने का ख्याल तक अपने दिल में ला पाता लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में एक शख्स ऐसा भी था जिसने इस मशहूर अदाकारा से मिले विवाह प्रस्ताव को काफी सोच, विचार के बाद ठुकराने का हौसला दिखाया था। वह शख्स थे संगीतकार एस मोहिन्दर।
एस मोहिन्दर के नाम से आज की पीढी़ शायद ही परिचित हो। उन्होंने 1940 से 1960 के दशक में कुछ चुनींदा फिल्मों में बेहतरीन संगीत दिया था और कैरियर के शिखर पर वह अमेरिका में बस गए थे। 'शीरीं फरहाद' फिल्म में उनके स्वरबद्ध गीत काफी लोकप्रिय हुए थे। इनमें लता मंगेशकर का गाया और मधुबाला पर फिल्माया गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा हाफिज खुदा तुम्हारा सदाबहार गीतों में शामिल है।
कनाडा के टोरंटो की एक लेखिका इकबाल सिंह महाल ने अपनी पंजाबी पुस्तक 'सुरों दे सौदागर' में अभिनेत्री मधुबाला से एस मोहिन्दर को मिले विवाह प्रस्ताव की घटना का जिक्र किया है। मधुबाला ने लंबे-ऊंचे कद के खूबसूरत एस मोहिन्दर के सामने शादी का प्रस्ताव रखा था जबकि वह अच्छी तरह से जानती थीं कि एस मोहिन्दर का सुखमय वैवाहिक जीवन है और उनके बच्चे भी हैं।
मधुबाला ने उनकी पत्नी के गुजारे और उनके बच्चों की पढा़ई-लिखाई के लिए हर महीने आर्थिक सहायता के रूप में भारी-भरकम रकम देने की पेशकश भी की थी। एस मोहिन्दर मधुबाला से मिले विवाह प्रस्ताव को एकदम नहीं ठुकरा पाऐ। वह कई दिन तक इस पर विचार करते रहे और आखिरकार अपनी जिन्दगी का सबसे अहम फैसला करते हुए उन्होंने मधुबाला से 'नहीं' कहने की हिम्मत जुटा ही ली।
एस मोहिन्दर का जन्म अविभाजित पंजाब में मोंटगोमरी जिले के सिलनवाला गांव में 08 सितम्बर 1925 को एक सिख परिवार में हुआ। चौरासी वर्षीय एस मोहिन्दर मूल नाम मोहिन्दर सिंह सरना है। कुछ लोग उन्हें मोहिन्दर सिंह बख्शी के नाम से भी बुलाते हैं। एस मोहिन्दर के पिता सुजान सिंह बख्शी पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे, जिनका तबादला होता रहता था। उनके पिता बांसुरी बहुत अच्छी बजाते थे। इस तरह संगीत के कुछ अंश उन्हें अपने पिता से विरासत में ही मिले थे।
एस मोहिन्दर के पिता का तबादला बडे़ शहर लायलपुर में हुआ तो उनका परिवार वहां चला गया। लगभग 1935 की बात है, दस वर्षीय एस मोहिन्दर सिख धार्मिक गायक संत सुजान सिंह के सम्पर्क में आए और कई साल तक उनके शिष्य बनकर शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल करते रहे। इसके बाद उनका परिवार गुरु नानक के जन्मस्थान ननकाना साहिब के समीप शेखूपुरा चला गया, जहां उन्होंने सिख मजहब के एक बडे़ संगीतज्ञ भाई समुंद सिंह से शास्त्रीय संगीत की तालीम ली। एस मोहिन्दर ने दिग्गज शास्त्रीय गायक बडे़ गुलाम अली खां और लक्ष्मण दास से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण की थी।
पिता के लगातार तबादलों के कारण एस मोहिन्दर की शिक्षा काफी प्रभावित होने पर चालीस के दशक के प्रारंभ में उनका दाखिला अमृतसर जिले के कैरों गांव में खालसा हाई स्कूल में करा दिया गया। 1947 में देश का विभाजन होने पर उनका परिवार तो भारत में पूर्वी पंजाब चला गया लेकिन शास्त्रीय संगीत के लिए बाईस वर्षीय एस मोहिन्दर का प्रेम उन्हें बनारस खींच ले गया, जहां दो साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा को निखारने के बाद उन्होंने मुम्बई का रुख किया।
एस मोहिन्दर प्रारंभ में गायक बनना चाहते थे और कुछ वर्ष तक लाहौर रेडियो स्टेशन से भी गायक के रूप में जुडे़ रहे थे। उसी दौरान एक बार उनकी मुलाकात प्रसिद्ध अभिनेत्री, गायिका सुरैया से हुई। जिन्होंने उनके गायन की तारीफ करते हुए कभी मुम्बई आने पर उनसे मिलने को कहा। मुम्बई में दादर रोड़ पर अचानक उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर संगीतकार खेमचंद प्रकाश हो गई। जिन्होंने 'सेहरा' (1948) के लिए बतौर संगीतकार उनके नाम की सिफारिश की। यह संगीतकार के रूप में उनकी पहली हिन्दी फिल्म थी और इसमें उन्होंने एक गीत भी गाया था, ऐ दिल उडा के ले चल। फिल्म का निर्माण गोविंदा के माता-पिता निर्मला देवी और अरुण कुमार ने किया था और नायिका और नायक भी वही थे।
एस मोहिन्दर को पहला बडा़ ब्रेक रंजीत मूवीटोन की फिल्म 'नीली' से मिला। 1950 में बनी इस फिल्म के निर्माता चंदूलाल शाह थे और देव आनन्द और सुरैया नायक, नायिका थे। एस मोहिन्दर को यह फिल्म मिलने का किस्सा भी बडा़ दिलचस्प है। निर्माता चंदूलाल शाह ने एस मोहिन्दर से कहा कि वह अपनी फिल्म के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे हैं और इस बारे में सुरैया का फैसला अंतिम होगा। यह सुनकर एस मोहिन्दर ने निर्माता से यह नहीं बताया कि वह सुरैया को अच्छी तरह जानते हैं और सीधे उनके पास जाकर पूरी स्थिति उन्हें बताई। सुरैया ने उनसे मदद का वादा किया लेकिन कहा कि वह निर्माता को यह नहीं बताएं कि वह उनसे पहले ही लौहार में मिल चुके हैं। उन्होंने कहा, मैं तुम्हें बुलवाऊंगी जरूर मुझे गाना सुनाना लेकिन मेरी तरफ देखना नहीं आंख न मिलाना मुझसे कि पता न चले कि तुम्हें मैं जानती हूं।
स्टूडियो में सुरैया ने एस मोहिन्दर से गाने सुनने का दिखावा करते हुए संगीतकार के रूप में उनके नाम का अनुमोदन कर दिया। इस फिल्म के लिए एस मोहिन्दर ने सात हजार रुपए लिए थे। फिल्म में नौ में से सात गाने सुरैया ने गाए थे। इनमें चोरी चोरी आना ओ राजा मोरे दिल के और फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में तू भी ले जैसे गीतों से उन्होंने फिल्म जगत को अपनी प्रतिभा से परिचित कराया।
एस मोहिन्दर की अगली दो बडी़ फिल्में पापी-1953 और शीरीं फरहाद-1956 थीं। चंदूलाल शाह निर्देशित पापी के निर्माण के समय तक मुकेश राजकपूर की आवाज बन चुके थे लेकिन इस फिल्म में एस मोहिन्दर ने राजकपूर के लिए मोहम्मद रफी की आवाज का इस्तेमाल किया। रफी की माहौल पर छा जाने वाली गंभीर आवाज में स्वरों के ऊंचे उठान के साथ गाया गाना तेरा काम है जलना परवाने चाहे शमां जले या न जले बेहद लोकप्रिय हुआ। हालांकि परदे पर राजकपूर ने चार्ली चैपलिन की शैली में अभिनय करके गीत में व्यक्त गंभीर भावों में हल्कापन ला दिया था लेकिन इससे गीत की प्रभावोत्पादकता में किसी तरह की कमी नहीं आई।
दर्शकों ने पापी को सिरे से नकार दिया लेकिन इस गीत को बेहद सराहना मिली। परदे पर जैसे ही यह गीत आता था, उनके कदम खुद-ब-खुद उसके साथ ताल मिलाने लगते थे। यह भी रोचक तथ्य है कि निर्माता ने शुरु में गीत को असंतुष्ट होकर ठुकरा दिया था लेकिन बाद में शूटिंग पूरी होने पर फिल्म की लंबाई बढा़ने के लिए इसे शामिल किया था।
मेरी जिन्दगी है तू तुझको मेरी जुस्तजू आशा-रफी तथा अभी-अभी बहार थी, ऐ जज्ब-ए-मुहब्बत इतना असर दिखा दे, न पहलू में दिल है और कौन कहे उनको जा के ऐ हजूर में भी बेहद कर्णप्रिय संगीत था। पापी से ही जुडा़ एक और प्रसंग है। एस मोहिन्दर को अनारकली के संगीतकार के रूप में अनुबंधित किया गया था। इसके लिए उन्होंने दो गीत भी रिकार्ड कर लिए थे लेकिन निर्माता को गीत जब पसंद नहीं आए तो उन्होंने उन गीतों को पापी में शामिल कर लिया। बाद में निर्माता ने उन गीतों की मांग की। अब एस मोहिन्दर को यह फैसला करना था कि दोनों फिल्म निर्माताओं में किसे नाराज करें। उस समय तक लगभग अनजान बीना राय प्रदीप कुमार के बजाय राज-नरगिस की लोकप्रिय जोडी़ वाली पापी को चुनना उन्हें ज्यादा व्यावहारिक लगा लेकिन इस फैसले से अनारकली उनके हाथ से निकल गई और चोटी पर पहुंचने का मौका भी उन्होंने गंवा दिया।
एस मोहिन्दर के मधुबाला के पिता से दोस्ताना और उनके परिवार से घरेलू ताल्लुकात थे। मधुबाला प्रोडक्शन में बनी फिल्म नाता में उन्हें संगीतकार चुने जाने से पता चलता है कि उनके और मधुबाला के पिता के बीच किस कदर दोस्ती थी। एस मोहिन्दर ने ही मधुबाला के पिता और शीरीं फरहाद के निर्माता के बीच पैसे के लेन-देन के विवाद को सुलझाने और एक बंगाली हीरोइन की जगह मधुबाला को यह फिल्म दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
शीरीं फरहाद में एस मोहिन्दर के स्वरबद्ध नौ गीत थे जिन्हें तनवीर नकवी ने लिखा था। फिल्म के सभी गीत अपने जमाने में बेहद मकबूल हुए थे गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा, हाफिज खुदा तुम्हारा के अलावा हजारों रंग बदलेगा जमाना-न बदलेगा मुहब्बत का फसाना (रफी) सुनाऊं किसको अफसाना न अपना है न बेगाना (तलत महमूद) और रफी और साथियों की आवाज में आखों में तुम्हारे जलवे हैं होठों पे तुम्हारे अफसाने कव्वाली को दर्शकों और श्रोताओं ने काफी सराहा था। शीरीं फरहाद की उपलब्धि हेमंत कुमार के तीन सुरीले युगल गीत भी थे। उनके लता के साथ गाए गीत आ जा ओ जाने वफा और आशा के साथ गाए गीतों ऐ दिलरुबा, जाने वफा, तूने ए क्या जादू किया तथा खुशियों को लूटकर यहां देते हैं गम निशानियां को क्लासिक की श्रेणी में रखा जा सकता है।
शीरीं फरहाद से जुडे़ कुछ रोचक प्रसंग हैं। मधुबाला फिल्म के संगीत से इस कदर प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने अपनी व्यस्त शूटिंग के बाद एस मोहिन्दर के घर जाकर उत्कृष्ट संगीत रचनाओं के लिए उनका आभार व्यक्त किया था। एस मोहिन्दर ने गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा गीत में कुछ जगहों पर ऊंचे स्वर रखे थे, जिस पर लता मंगेशकर को एतराज था लेकिन उन्होंने यह कहकर उन्हें शांत कर दिया कि मैंने लता को बुलाया है किसी और को नहीं। फिल्म के एक युगल गीत में हेमंत कुमार को उन्होंने अभिनेता प्रदीप कुमार के कहने पर लिया था।
एस मोहिन्दर गायक-गायिकाओं में मोहम्मद रफी और तलत महमूद तथा आशा भोंसले के बडे़ प्रशंसक थे। वह बताते हैं कि आशा और रफी आखिर तक उनके पसंदीदा गायक-गायिका रहे थे। तलत महमूद की सराहना करते हुए वह नहीं थकते हैं। उनका कहना है कि रफी की शैली का तो कई गायकों ने अनुकरण करने की कोशिश की लेकिन तलत महमूद की नकल करने की कोशिश भी कोई नहीं कर सकता।
एस मोहिन्दर ने हिन्दी फिल्मों के अलावा कुछ पंजाबी फिल्मों और अलबमों के लिए भी श्रुतिमधुर संगीत दिया। वह बताते हैं कि साठ के दशक में शादरूल क्वात्रा और हंसराज ही रह गए थे, जो पंजाबी फिल्मों में संगीत दिया करते थे। उस स्थिति में उन्होंने भी पंजाबी फिल्मों में खुद को आजमाने की कोशिश की लेकिन तथ्य यह भी है कि वह रिपोर्टर राजू-1962, कैप्टन शेरू-1963, सरफरोश-1964, प्रोफसर एक्स-1966 और सुनहरे कदम-1966 जैसी स्टंट या छोटी फिल्मों से उकता गए थे और यह समझने लगे थे कि सुरीले गीतों का स्थान लेते जा रहे शोरशराबे वाले संगीत में उनके लिए स्थान नहीं रह गया है। संगीतकार के रूप में उनकी पहली पंजाबी फिल्म परदेसी ढोला थी जो कामयाब रही। इसके बाद उन्होंने पंजाबी फिल्मों में संगीत देने पर अपना पूरा ध्यान लगा दिया।
लच्छी फिल्म में एस मोहिन्दर ने बेहद सुरीला संगीत दिया। इस फिल्म के गाने काफी लोकप्रिय रहे। लता मंगेशकर से उन्होंने इस फिल्म के लिए नाले लम्बी वे नाले काली हाथ वे चन्ना रात जुदायां वाली गीत गवाया जो इस कदर लोकप्रिय हुआ कि यशपाल ने अपने मशहूर उपन्यास झूठा सच में एक लड़की द्वारा यह गीत गुनगुनाने का वर्णन किया था।
एस मोहिन्दर की अन्य पंजाबी फिल्मों दाज नानक नाम जहाज 1969, दुखभंजन तेरा नाम-1974, चंबे दी कली, मन जीते जग जीत-1973, पापी तारे अनेक और मौला जट्ट, ने भी खूब धूम मचाई। नानक नाम जहाज से वह संगीत के उस मुकाम पर पहुंच गए जहां उन्हें संगीत के लिए 1970 का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उनका मानना है कि 'मुगले आजम' के लिए जो काम बडे़ गुलाम अली खां के गायन ने किया था, वही काम भाई समुंद सिंह ने 'नानक नाम जहाज' के लिए किया। इस फिल्म में उनके गाए शबदों की तुलना नहीं हो सकती।
नानक नाम जहाज फिल्म की जबरदस्त कामयाबी के साथ देश में सिख धर्म की कहानियों पर आधारित सार्थक फिल्में बनाने का दौर शुरु हुआ। दे शिवा वर मोहे-महेन्द्र कपूर, मेरे साहिब और रे मन ऐसो कर-आशा, हम मैले तुम उज्जल करते-मन्नाडे, कल तारन गुरु नानक आया-भाई समुंद सिंह रागी जैसे शबद बेहद सराहे गए।
एस मोहिन्दर ने नब्बे के दशक में कुछ प्राइवेट अलबमों के लिए भी संगीत दिया, जिनमें कुछ भक्ति संगीत और कुछ पंजाबी लोकसंगीत पर आधारित थे। इन अलबमों में पंजाब की सुप्रसिद्ध गायिका सुरेन्दर कौर ने मुख्य रूप से गाने गाए। आशा भोसले की आवाज में उनके शबदों का एक अलबम 'मास्टरपीस' है। अमेरिका में भी उन्होंने भक्ति गीत और रोमांटिक गीतों के कुछ अलबम निकाले।
एस मोहिन्दर के गैर फिल्मी शबद, रफी की आवाज में, हर का नाम सदा सुखदाई और आशा भोसले की आवाज में मितर प्यारे नूं, थिर थिर बैसो, भी खूब लोकप्रिय रहे। बाबा फरीदुद्दीन गज-ए-शकर के सूफियाना कलाम को लेकर जगजीत सिंह, नीलम साहनी आदि के स्वरों में उनकी स्वरबद्ध धुनों एक अलबम भी चर्चित रहा।
एस मोहिन्दर ने जिन हिन्दी फिल्मों में संगीत दिया उनमें प्रमुख हैं: जीवन साथी 1949, शादी की रात 1950, श्रीमती जी 1952ए वीर अर्जुन 1952, बहादुर 1953, सौ का नोट 1955, शाहजादा 1955, कारवां 1956, सुल्तान ए आजम 1956, पाताल परी 1957, नया पैसा 1958, सुन तो ले हसीना 1958, भगवान और शैतान 1959, खूबसूरत धोखा 1959, दो दोस्त 1960, महलों के ख्वाब 1960, जमीन के तारे 1960, एक लड़की सात लड़के 1961, जय भवानी 1961, बांके सांवरिया 1962, जराक खान 1963, बेखबर 1960, पिकनिक 1966, दहेज 1981 और संदली 1986।
मधुबाला पर यह फीचर दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हो चुका है।
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रोचक आलेख मधुबाला पर.
ReplyDeleteइस अद्भुत सौन्दर्य की स्वामिनी को सलाम करने को जी चाहता है।
ReplyDelete--------
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भारतीय सेना में भी है दम, देखिए कितना सही कहते हैं हम।
Madhubala ki zindagi se ru-ba-ru karane k liye aapko bahut-bahut shukriya,,,Ummeed hai ki isi tarah aur kuch batayengi!
ReplyDeleteArun Kr Mayank
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